Sir Sayajirao Gaikwad Scholarship - The Power of Ambedkar

Namo Buddha

Breaking

 


Saturday, November 24, 2018

Sir Sayajirao Gaikwad Scholarship

बड़ौदा के महाराज ने बाबा साहब आंबेडकर को वजीफा दिया 

और बाबा साहब विदेश जा कर पढ़ना चाहते तो उनकी पत्नी रमाबाई और 5 बच्चे थे तो देखिए वह किस प्रकार से बाबा साहब अपनी बात रमाबाई के सामने रखते हैं


बाबा साहेब - रमा बड़ौदा के महाराज ने मुझे वजीफा दिया है और मैं विदेश जा कर पढ़ना चाहता हूं लेकिन जब मैं तेरी तरफ मुड़कर देखता हूं तेरे पास 5 बच्चे हैं आमदनी का कोई साधन नहीं है और मैं भी तुझे कोई पैसा देकर नहीं जा रहा हूं क्या ऐसी परिस्थिति में तू मुझे विदेश जाकर पढ़ने की अनुमति देगी

रमाबाई - बाबा साहब यह बात सच है कि मेरे पास 5 बच्चे हैं और आमदनी का भी कोई साधन नहीं है और आप भी मुझे कोई पैसा देकर नहीं जा रहे हो लेकिन मैं आपको भरोसा दिलाती हूं आप अपनी इच्छा को पूरी करके आना आप अपनी पढ़ाई को पूरी करके आना इन 5 बच्चों का पेट मैं खुद पाल लूंगी, और जब माता रमाबाई बाबा साहब को भरोसा दिलाती हैं तो बाबासाहब विदेश चले जाते हैं और अपनी पढ़ाई करते हैं और इधर माता रमाबाई अपने 5 बच्चों के पेट को पालने के लिए क्या करती है

माता रमाबाई मुंबई की गलियों से गोबर उठा कर लाती उसके बाद उपले बनाकर मुंबई की गलियों में उपले बेच कर आया करती और उससे जो पैसा आ जाता अपने बच्चों का पेट पालती है
इतना पैसा नहीं आता था कि वह अपने बच्चों की परवरिश कर पाती देखते ही देखते उनका बड़ा बेटा दामोदर बीमार हो गया इलाज के पैसे नहीं थे इलाज नहीं करवाया और दामोदर इस दुनिया को छोड़ कर चला गया यह बात माता रमाबाई ने बाबा साहब को नहीं बताई

          (बाबा साहब द्वारा भेजा गया पत्र)


नानकचंद रत्तू खत पढ़ते हुए- बाबा साहब कहते हैं  कि रामा मैं यहां अगर एक वक्त का खाना खाता हूं तब भी मेरा काम नहीं चल पा रहा है मैं अपना जीवन बड़ी मुश्किल में व्यतीत कर रहा हूं में अपना सुबह का नाश्ता दोपहर में करता हूं और शाम को मैं पानी पीकर अपना काम चला रहा हूं और मैं जानता हूं कि तेरे सामने भी बहुत विफल परिस्थितियां हैं तेरे पास पांच बच्चे हैं  और आमदनी का भी कोई साधन नहीं है फिर भी अगर हो सके तो कुछ पैसा भिजवा देना

इधर माता रमाबाई ने बड़ी मुश्किल से कुछ पैसा इकट्ठा किया था लेकिन उनकी बेटी इंदु बीमार हो जाती है अब माता रमाबाई के सामने एक बहुत बड़ा सवाल था कि वे उस पैसे से अपनी बेटी का इलाज कराएं या अपने पति को दिए गए वचन को निभाएं लेकिन एक मां ने फैसला किया और वह पैसा बाबा साहब को भेज दिया और इधर उनकी बेटी इंदू ने भी दम तोड़ दिया और यह बात भी माता रमाबाई ने बाबा साहब को नहीं बताई और बाबा साहब पढ़ते रहे और कुछ समय के बाद बाबा साहब अपनी पढ़ाई छोड़कर बड़ौदा के महाराज की रियासत में नौकरी करने के लिए आते हैं तो रमाबाई खुश होती है और क्या कहती है

रमाबाई - अब तो मेरा पति डॉक्टर बन के आ रहा है अब मेरा पति नौकरी करेगा तनखा कमा कर लाएगा अब तो अपने बच्चों को मैं भरपेट खाना खिलाऊंगी अब तो मेरी जिंदगी के दिन बदल जाएंगे

बाबा साहब जब दफ्तर में प्रवेश करते हैं


चपरासी - टाट को खींच लेता है और पानी के घड़े को उठाकर अलग रख देता है

बाबा साहब - अरे चपरासी  जरा मुझे फाइल तो लाकर देना
चपरासी - फाइल को भी डंडे से उठा कर देता है
बाबा साहब क्या बदतमीजी है यह क्या हो रहा है तू एक चपरासी होकर मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है

चपरासी - अंबेडकर तुम पढ़-लिख जरूर गए हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम हमारी बराबरी पर आ गए हो तुम आज भी नीच हो और तुम्हारे साथ में काम करके अपना धर्म नष्ट नहीं कर सकता

बाबा साहब - क्या मतलब मेरे साथ तेरा धर्म कैसे नष्ट हो सकता है और तू जानता है कि मैं तुझे नौकरी से निकाल सकता हूं

चपरासी - अंबेडकर यह बात में अच्छे से जानता हूं और तुम मुझे नौकरी से भले ही निकाल दो लेकिन मैं तुम्हारे साथ रहकर इस दफ्तर में काम नहीं कर सकता

बाबा साहब मैं ऐसे अपमानजनक स्थान पर और अधिक नौकरी नहीं कर सकता

संचालक - बाबा साहब ने 11वें ही दिन अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने घर के लिए निकलते हैं और बड़ौदा के रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाते हैं वहां उनकी ट्रेन 4 घंटे लेट होती है तो बाबा साहब एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं और क्या कहते हैं

बाबा साहब - मैं पहले यह सोचता था कि हमारे लोग मरे पशुओं को उठाते हैं उनकी खाल खींचते हैं और उनका मांस खाते हैं हमारे लोग दूसरों की टट्टी को अपने सर ऊपर उठाकर फेंकने का काम करते हैं मेरे लोग गंदे रहते हैं उनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं है और उनके पास पैसा भी नहीं है तो हो सकता है यह लोग हमारे लोगों से इसलिए ऐसा व्यवहार करते हैं हो सकता है  यह लोग  हमारे लोगों को इसीलिए नीच कहते है लेकिन आज तो मैंने यूरोप के कपड़े पहने हैं अमेरिका और जापान की यूनिवर्सिटियों से शिक्षा प्राप्त की है और एक अधिकारी बनकर मैं यहां आया हूं जब ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं तो जो मेरे समाज के अशिक्षित और अनपढ़ लोग हैं तो ये लोग उनके साथ कैसा व्यवहार करते होंगे (रोते हुए) अगर मैं अपने समाज को इस ग़ुरबत और गुलामी से आजाद नहीं करा पाया तो मैं वापस बड़ौदा लौट कर नहीं आऊंगा और मैं खुद को गोली मार लूंगा

 बाबा साहब जब नौकरी छोड़कर अपने घर पहुंचते हैं और यह बात रमाबाई को पता चलती है तो रमाबाई को बहुत दुख होता है

बाबा साहब - रमा मैं नौकरी तो करना चाहता था लेकिन वहां का चपरासी मुझे फाइल डंडे में बांध कर देता पानी के घड़े को उठाकर अलग रख लेता और वहां के लोगों ने भी मुझे मारने की योजना बनाई मैं ऐसे अपमानजनक स्थान पर नौकरी नहीं कर सकता था इसीलिए मैं नौकरी छोड़ कर चला आया

रमाबाई - बाबा साहब आपको जैसा अच्छा लगे आप ऐसा काम करें मैं आपके साथ हूं

फिर बाबा साहब को अपनी अधूरी पढ़ाई और बड़ौदा रेलवे स्टेशन पर लिए गए संकल्प का ख्याल आता है तो बाबासाहब फिर से विदेश जाकर हम सब की गुलामी का कारण जो हिंदू धर्म के ग्रंथों में लिखा हुआ है उसे खोजते हैं इधर उनका तीसरा बेटा रमेश भी इस दुनिया को छोड़ कर चला जाता है इस प्रकार से बाबा साहब के तीन बच्चे कुर्बान हो जाते हैं और जब बाबा साहब विदेश से लौट कर आते हैं और हमारी गुलामी व नीचता का कारण हमें बताते हैं

बाबा साहब - मैं कड़ी मेहनत और लगन से यह जान पाया हूं कि हमारे समाज के लोगों के साथ जो नीचता भरा और गुलामी का व्यवहार हो रहा है उसका कारण हिंदू धर्म के जो ग्रंथ हैं उनमें लिखा हुआ है और मैं आज यह घोषणा करता हूं कि 25 दिसंबर सन 1927 को पूरी देश के मीडिया को सूचना देकर इस हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ को अग्नि की भेंट चढ़ा कर आप सब को आजाद कर दूंगा

संचालक - और बाबा साहब 25 दिसंबर सन 1927 को हजारों लाखों की संख्या में के सामने हिंदू धर्म के ग्रंथों को वह मनुस्मृति को अग्नि की भेंट चढ़ा कर आप सबको हम सबको इस नीचता और जिल्लत भरी जिंदगी से आजाद करते हैं और कहते हैं

25 दिसंबर 1927


बाबा साहब - मैं ऐसी किसी भी बात को नहीं मान सकता जो अमानवीय है और आज के बाद ऐसा कोई भी विधान  व कोई भी कानून मेरे समाज के लोगों पर लागू नहीं होगा जो अमानवीय है क्योंकि यह विधान जबरजस्ती हमारे समाज के लोगों पर थोपा गया है

ऐसा कहकर बाबा साहब मनुस्मृति को अग्नि की भेंट चढ़ा देते हैं और आप सबको आजाद करा देते हैं उसके बाद बाबा साहब मुंबई की कोर्ट में वकालत करते हैं तो उनका जो चौथा बेटा होता है राजरतन वह बीमार हो जाता है देखिए वह दृश्य

रमाबाई - नानकचंद रत्तू जाओ जल्दी से बाबा साहब को बुलाकर लाओ क्योंकि हमारा जो बेटा है राजरतन वह बहुत बीमार है और वह लंबी लंबी सांसे ले रहा है

नानकचंद रत्तू - बाबा साहब - 2 जल्दी से घर चलिए आपके पुत्र राजरतन तबीयत बहुत खराब है और र माता रमाबाई ने आपके लिए बुलावा भेजा है

संचालक - जैसे ही बाबा साहब दौड़कर घर पहुंचते हैं और राजरतन को गोदी में लेते हैं तो राजरतन भी दम तोड़ता है अपने चौथे बेटे की मौत पर पति के सामने माता रमाबाई क्या कहती हैं

रमाबाई - रोते हुए बाबा साहब बस करो बाबा साहब अब तो बस करो क्योंकि आपके समाज सुधार की लालसा ने और ज्ञान पाने की लालसा ने मेरा पूरा घर उजाड़ के रख दिया है मैंने एक एक करके अपने 4 बच्चों को दफन कर दिया है बाबा साहब अब तो बस करो

बाबा साहब - रमा तू तो मुझे रो करके बता पा रही है मैं तो रो भी नहीं पा रहा हूं मैं तो रोज ऐसे सैकड़ों बच्चों को मरते हुए देखता हूं रमा तू चुप हो जा, रमा तू चुप हो जा

रमाबाई - बाबा साहब मैंने आज तक आपकी हर बात को माना है और इस बात को भी मान लेती हूं और चुप हो जाती हूं लेकिन आप मुझे इतना बता दो कि आप बड़े फक्र से कहते थे कि तेरा बेटा राज रतन देश पर राज करेगा लेकिन अब यह इस दुनिया में नहीं रहा बताओ यह कैसे इस देश पर राज करेगा बाबा साहब मुझे बता दो कि यह कैसे देश पर राज करेगा

बाबा साहब - रमा यह सच है कि तेरा यह पुत्र अब इस दुनिया में नहीं रहा लेकिन मैं तुझे भरोसा दिलाता हूं और राजरतन के पार्थिव शरीर की सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं अपने जीवन में ऐसा काम करके जाऊंगा कि हर रमा की कोख से पैदा हुआ राजरतन और हर मां की कोख से पैदा हुआ बेटा इस देश पर राज करेगा मैं तुझे भरोसा दिलाता हूं

इतना कहने के बाद बाबा साहब अपनी जेबों में हाथ डालते हैं और राजरतन के कफन के लिए उन की जेब में एक पैसा तक नहीं होता है इस बात को माता रमाबाई जानती है और रमाबाई अपनी साड़ी का दुपट्टा पार कर राजरतन के ऊपर डाल देती है और बाबा साहब को ख्याल आता आता है कि मुझे गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन जाना है और बाबा साहब राजरतन के पार्थिव शरीर को छोड़ घर पर ही छोड़ कर लंदन के लिए निकलते हैं तभी पीछे से उनका भाई दौड़कर आता है और कहता है

भाई - भीम तू पागल हो गया है यह तेरा पुत्र मरा पड़ा है और तुझे विदेश जाने की सूझ रही है तू कैसा बाप है जो अपने पुत्र को इस अवस्था में छोड़कर विदेश जा रहा है और यह समाज क्या कहेगा अपने पुत्र को कंधा देकर उसका अंतिम क्रिया कर्म तो कर ले

बाबा साहब - भाई मैं जानता हूं कि यह मेरा पुत्र मरा पड़ा है लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि अगर आज मैं गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन नहीं गया तो गांधी एंड कंपनी के लोग मेरे करोड़ों करोड़ों लोगों को मार डालेंगे के सारे और हक अधिकारों को छीन लेंगे इसलिए मैं एक पुत्र की खातिर अपने करोड़ों करोड़ों लोगों को बलि चढ़ते हुए नहीं देख सकता यहां तुम सब लोग हो तुम सब संभाल लोगे

ऐसा कहते हुए बाबा साहब गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन चले जाते हैं और आज आपके जो बच्चे हैं आपका जो समाज है जो हक और अधिकार लेकर जी रहा है अपने बच्चों को अच्छे अच्छे कपड़े अच्छी अच्छी शिक्षा और नौकरियों में भेज रहा है इसका श्रेय केवल और केवल बाबा साहब को जाता है और आपके जो लोग हैं वह इस बात को अपने बच्चों को बताने तक शर्माते हैं ।..
Share Please JAI BHIM
Enter your email address:


Delivered by FeedBurner

No comments:

Post a Comment

Jobs and Study

Popular

JOIN WoodUp