Loka Raja Chhatrapati Rajarshi Shahu Maharaj Against of Brahminical - The Power of Ambedkar

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Wednesday, July 1, 2020

Loka Raja Chhatrapati Rajarshi Shahu Maharaj Against of Brahminical

ब्राह्मणवादी परंपरा के अनुसार सबसे महान राज्य रामराज्य और सबसे महान राजा राम हुए हैं लेकिन इस राम राज्य में लोगों का मूल कर्तव्य व्यवस्था का पालन करना था.
Shiv-Fule-Shahu-Ambedkar
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यानी शूद्र और अति शुद्ध बीजों की सेवा करेंगे और स्त्रियां पुरुषों की यदि इसका उल्लंघन कोई करता है तो उसको दंड भी मिलेगा, इसके बरअक्स बहुजन श्रमण परंपरा में ऐसे राजा हुए हैं जिनका राज्य सचमुच में न्याय और जनता के कल्याण की स्थापना के लिए था और जिन्होंने वर्ण जाति व्यवस्था एवं इस पर आधारित भेदभाव को ध्वस्त करने में अपना जीवन लगा दिया ऐसे ही एक राजा राजर्षी शाहू महाराज थे वह कैसे राजा हुए जिन्होंने ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले के सपनों को साकार कर दिया शाहू जी महाराज 2 जुलाई 1894 में कोल्हापुर के राजा बने थे राजा बनते ही उन्होंने राज्य और समाज पर ब्राह्मणों के वर्चस्व को तोड़ने की शुरुआत कर दी थी. 

26 जुलाई 1902 को भारतीय समाज में उन्होंने वह काम कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी शाहू जी महाराज ने चितपावन ब्राह्मणों के प्रबल विरोध के मध्य 26 जुलाई को अपने राज्य कोल्हापुर की शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में दलित पिछड़ों के लिए 50% आरक्षण लागू किया.
भारत में जाति के आधार पर मिला पहला आरक्षण था, इस कारण शाहूजी आधुनिक आरक्षण के जनक कहलाए परवर्ती काल में बाबासाहेब डॉक्टर आंबेडकर ने साहू जी द्वारा लागू किए गए आरक्षण का ही विस्तार भारतीय संविधान में किया संविधान में दलितों के लिए आरक्षण को लागू हो गया लेकिन ओबीसी जातियों के लिए आरक्षण भविष्य पर छोड़ दिया गया जबकि साहू जी ने अपने राज्य में पिछड़ों और दलितों दोनों के लिए आरक्षण लागू किया था भारत में पिछड़े या ओबीसी जातियों को आरक्षण आबादी के करीब 45 वर्षों बाद 16 नवंबर 1992 को मिला यानी साहू जी द्वारा आरक्षण लागू करने के 90 वर्ष बाद 1894 में जब वह शाहूजी महाराज राजा बने थे उस समय कोल्हापुर राज्य के अधिकांश पदों पर चितपावन ब्राह्मणों का कब्जा था सन 1894 में जब शाहू महाराज ने राज्य की बागडोर संभाली थी उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन ने कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे इसी प्रकार लिपिक के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर ब्राह्मण थे शाहूजी महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को 50% आरक्षण उपलब्ध कराने के कारण 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या 35 रह गई थी शाहूजी महाराज फुले की किताब गुलामगिरी में व्यक्त किए गए इस विचारों से सहमत हैं 



      विद्ये विना मती गेली। मती विना निती गेली॥
      निती विना गती गेली। गती विना वित्त गेले।।
      वित्त विना शुद्र खचले । एवढे अनर्थ एका                  अविद्येने केले॥

किए शाहू महाराज ने पिछड़े दलित जातियों के बीच व्याप्त विद्या के नाच का बीड़ा उठाया भारत के इतिहास में पहले राजा थे जिन्होंने 25 जुलाई 1917 को प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क बना दिया इसके.

पहले 1912 में ही उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया था स्त्री शिक्षा के फुले दंपत्ति के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया 500 से 1000 तक की जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में स्कूल खोला गया उन्होंने 1920 में निशुल्क छात्रावास खुलवाया इस छात्रावास का नाम प्रिंस शिवाजी मराठा फ्रीबोर्डिंग इन हाउस रखा गया अछूतों को समाज में बराबरी का हक दिलाने, और उनके स्थिति में सुधार के लिए साहू जी ने अन्य विशेष कदम भी उठाए 1919 से पहले अछूत कहे जाने वाले समाज के किसी भी सदस्य का इलाज किसी अस्पताल में नहीं हो सकता था 1919 में साहू जी ने एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार अछूत समाज का कोई भी व्यक्ति अस्पताल आकर सम्मानजनक इलाज करा सकता है इसके अलावा उन्होंने 1919 में ही यह आदेश भी जारी किया कि प्राइमरी स्कूल हाई स्कूल और कॉलेजों में जाति के आधार पर छात्रों के साथ कोई भी भेदभाव ना किया जाए उन्होंने दलितों को नौकरियों में जगह देने के साथ ही इस


बात का आदेश दिया कि सरकारी विभागों में कार्य कर रहे दलित जाति के कर्मचारियों के साथ समानता और शालीनता का बर्ताव किया जाए किसी प्रकार का छुआछूत नहीं होना चाहिए जो अधिकारी इस आदेश का पालन न करने के इच्छुक हो वह 6 महीने के भीतर त्यागपत्र दे दे. 1918 में उन्होंने कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा वतन दारी का अंत किया तथा भूमि सुधार लागू कर म्हारो को भूस्वामी बनने का हक दिलाया इस आदेश से म्हारो के आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई दलित हितैषी कोल्हापुर नरेश ने 1920 में मनमाड में दलितों की विशाल सभा में सागर में घोषणा करते हुए कहा था मुझे लगता है अंबेडकर के रूप में तुम्हें तुम्हारा मुक्तिदाता मिल गया है मुझे उम्मीद है वह तुम्हारे गुलामी की बेड़ियां काट डालेंगे उन्होंने दलितों के मुक्तिदाता की महेश जुबानी प्रशंसा नहीं की बल्कि उनके अधूरी पड़ी विदेशी शिक्षा पूरी करने तथा दलित मुक्ति के लिए राजनीति को हथियार बनाने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान किया पिछड़ों दलितों और महिलाओं
उनको न्याय और क्षमता का हक दिलाने के लिए चलो जी महाराज को महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मणों के को और क्रोध का शिकार होना पड़ा उन्हें विभिन्न तरीकों से अपमानित करने की कोशिश की गई पिछड़े दलितों के अपने ही सर राजा का शासन काल सिर्फ 28 वर्ष ही रहा मात्र 48 वर्ष की उम्र में 6 मई 1922 को उनका देहांत हो गया लेकिन जो मशाल उन्होंने फुले से प्रेरणा लेकर जलाई थी उसके रोशनी आज भी कायम है.



Artical Writter by
Gaurav  
The GRH Groups



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