बुद्ध कथा सुख और दुःख का राज
(एक आदमी एक मूर्ति के सामने रो रहा था)
भगवान बुद्ध :- आप पत्थर से बनी मूर्ति से क्या चाहते हो?
व्यक्ति :- सुख!
बुद्ध :- तो दुःख क्यूं नही चाहिये?
व्यक्ति :-(गुस्से में) दुःख है,इसलिये सुख माँग रहा हूँ
बुद्ध :- क्या तुम सवाल पुछे बगैर जवाब दे सकते हो?
व्यक्ति :- सवाल के बाद जवाब आता है!
बिना सवाल जवाब कैसे दें?
बुद्ध :- मेरे प्यारे इंसान, तो फिर दुःख के बिना सुख की आशा क्यूँ रखता है?
सुख तब मिलेंगा जब दुःख को तुम संघर्ष और मेहनत से दूर करोगे,
दुःख , मूर्ति के सामने बैठ कर और रो कर खत्म नही होता,
बल्कि और बढ़ जाता है,
क्यूँकि पत्थर की चीजें कभी दुःख दूर नही करती हैं
क्यूँकि वे निर्जीव है,
तुम सजीव हो, इंसान हो दुःख दूर करने के कई
उपाय है,
और सुख पाने के भी उपाय है,
मगर वो उपाय सत्य पर आधारित होना चाहिये,
असत्य के राह पर मिलने वाला हर सुख, दुःख बन जाता है।
सत्य के राह पर हासिल किया सुख निरंतर और प्रेरणादायी रहता है,
जब तक अज्ञान है ,तब तक दुःख रहेगा, अज्ञान जाने के बाद दुःख भी नही रहता,
दुःख के बिना सुख अधुरा है, मगर जिसे तुम दुःख समझते हो उसे तुम हरा सकते हो,
व्यक्ति :-कैसे?
बुद्ध :- दुःख एक चीज से पैदा होता है ,वह है इच्छा या आकांक्षा,
( लालच,लगाव,अति प्रेम,अति मोह और उन जैसी चीजों को पाने की आशा )
अगर इन इच्छाओ को आप जीत जाते हैं, तो हर दुःख, सुख के समान हो जाता है,
जो चीज अपनी नहीं है ये जानते हुये भी ,
उसे पाने जाते है ,इसका मतलब,
दुःख आपके पास नही आप दुःख के पास जाते हो,
इसलिये असत्य राह, पत्थर के भगवान से दुवा मांगने से दुःख दूर नही होता,
बल्कि अमूल्य समय और मन की शांति चली जाती है,
और इस खूबसूरत दुनिया में तुम उदास बने रहते हो,
व्यक्ति :- आप कौन हो ?
बुद्ध :- मै एक जागृत इंसान हूँ ।
व्यक्ति :- क्या आपके पास दुःख नही है?
बुद्ध :- दुःख है, मगर मेरे पास तृष्णा नही है.
जिसके पास, तृष्णा है उसके पास दुःख, चुंबक के तरह चिपके रहता है,
और जिसके पास तृष्णा नही है, उसके आजू बाजू दुःख रहते है मगर उसे छु नही पाते,,
व्यक्ति :- तो क्या ये पत्थर की मूर्तियाँ मेरी सुन रही है?
बुद्ध :- आप भली भाँति जानते हो,पत्थर एक निर्जीव है, अगर सच मे भगवान कोई होता तो, सामने प्रकट होगा, पत्थर में क्यूँ जायेगा?
व्यक्ति :- आपका सत्य, वास्तविक सत्य ज्ञान, यह सच है,
जो चीज अपनी नहीं है,उसे मेहनत के बगैर पाने कि इच्छा रखना यही दुःख है,
बुद्ध :- मगर इस दुनिया से बिछुड़ जानेवाली चीजें मेहनत से नही मिलती,
उस दुःख का अंत उस चीज के साथ होता है,
दुनिया से बिछुडी़ चीजें वापस नही आती उसका दुःख करना मूर्खता के बराबर है,
व्यक्ति :- मैं मानसिक रोगी हो गया था, वास्तविक सच देखते हुये भी, काल्पनिक विचारों में व्यस्त रहता था, मुझे आपके जैसा जागृत होना है, मैं आपके विचारों की शरण आ गया हूँ !
बुद्ध :- साधू साधू साधू!!!
बौद्ध ज्ञान ही सत्य है,बाकी सब काल्पनिक सोच है,उस काल्पनिक सोच का वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है,
बुद्ध ज्ञान जीवन का सत्य मार्ग है,
आपको हमारी यह पोस्ट केसी लगी आप कमेंट बॉक्स में कमेंट नमो बुद्धा कीजिये, और हसते रहे.
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