अपनी विचारधारा से भटके हुए नजर आ रहे हैं भिम सैनिक - The Power of Ambedkar

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Thursday, September 17, 2020

अपनी विचारधारा से भटके हुए नजर आ रहे हैं भिम सैनिक

मायावती पासवान एडवोकेट प्रकाश अंबेडकर रामदास आठवले ये पहचानों के नेता इनदिनों अपनी विचारधारा से भटके हुए नजर आ रहे हैं।

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भटके हुए नजर आ रहे हैं भिम सैनिक


बीएसपी अध्यक्ष मायावती तो 2012 से रिटायर ही हो गई हैं। सेल्फ ऐसोसिएशन में हैं. केवल औपचारिकता निभाने के लिए वो कुछ इलेक्शन रैलियों को संबोधित करती हैं। संगठन की दिल्ली या लखनउ में समीक्षा वनवे होती है। कांशीराम जी की तरह वो राज्यों के दौरे नहीं करते लोगों से नहीं मिलते। इसका असर ये हुआ कि बीएसपी सिमटती हुई नजर आ रही है। सपा बसपा का गठबंधन अगर नहीं होता तो शायद पार्टी के लिए मुश्किल हो जाती थी। 


एडवोकेट प्रकाश अंबेडकर को 2018 के भीमा कोरेगांव मामले के बाद महाराष्ट्र के राजनीति में मास बेस लीडर के रूप में पहचान मिली लेकिन 2019 के लोकसभा इलेक्शन में कांग्रेस एनसीपी से उनका गठबंधन नहीं हुआ। कारण कुछ भी हो सकते हैं। 2019 के विधानसभा इलेक्शन में उन्होंने एमआईएम से गठबंधन ब्रेक कर दिया। बीएसपी की लाख कोशिशों के बावजूद भी उन्होंने बीएसपी के साथ कोई गठबंधन नहीं किया। 


रामदास अठावले और रामविलास पासवान बीजेपी के साथ चल दिए। लेकिन जिस तरह मायावती ने परशुराम की मूर्ति लगाने की बात कहकर बहुजनों के वैचारिक आंदोलन को ध्वस्त करने की बात कही वैसे ही एडवोकेट प्रकाश अंबेडकर ने पंढरपुर मंदिर से आन्दोलन की आवाज देकर बहुजनों के सांस्कृतिक आन्दोलन को ठेस पहुंचाई। 

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Kangana And Ramdas Aatwale 


एक वक्त था जब मान्यवर कांशीराम के संघर्ष के कारण मनुवादी भी बहुजन की बात करने लगे थे। बहुजनों को मान सम्मान देने लगे थे मिले मुलायम कांशीराम हवा हो गए जय श्री राम का नारा लगा और कमंडल की राजनीति बदल गई। 


लेकिन आज परशुराम की मूर्ति लगाने की बात करते हैं जो अपनी मां का हत्यारा था जिसने लाखों मां की कोख बर्बाद कर दी। ऐसे नायक हम समाज को देकर किस दिशा में जा रहे हैं। डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर का पंढरपुर पर अपना मत बिल्कुल स्पष्ट था लेकिन हमारे नेता धर्म को राजनीति में सम्मिलित करते हैं। वो कंगना रानावत आरक्षण के खिलाफ बात करती है। असभ्य भाषा का प्रयोग करती है उस मनो रुग्ण को मिलने। रामदास आठवले जाते हैं ये किस तरह की राजनीति में हम पहुँच गए हैं कोरोना से देश की अर्थव्यवस्था खराब कर दी है। करोडों लोगों की नौकरियां चली गई है। लेकिन ऐसे वक्त में सरकार को घेरने के बजाए आन्दोलन की राह चलने के बजाए मनुवादी हों अर्थात बीजेपी के पीच पर खेलना किस तरह का संकेत है।




Artical Writter by

Rohini 

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जय भीम जय सविधान

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