Jyotirao Phule Vs Bal Gangadhar Tilak - The Power of Ambedkar

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Tuesday, September 22, 2020

Jyotirao Phule Vs Bal Gangadhar Tilak

लड़कियों की स्कूली शिक्षा के खिलाफ थे तिलक, बाल गंगाधर तिलक ने जाति व्यवस्था का बचाव करने के क्रम में उन्होंने किसी को पीछे नहीं छोड़ा. 

phule vs tilak
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उनके हमले की जद में संकेत शिवर के शंकराचार्य और यहां तक कि आदि शंकराचार्य भी आए। तिलक का मानना था कि जाति पर भारतीय समाज की बुनियाद टिकी है। जाति की समाप्ति का अर्थ है भारतीय समाज की बुनियाद का टूट जाना। इसके बरक्स फुले जाति को असमानता की बुनियाद मानते थे और इसे समाप्त करने का संघर्ष कर रहे थे। तिलक ने फुले को राष्ट्रद्रोही कहा क्योंकि वो राष्ट्र की बुनियाद जाति व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे। तिलक ने प्राथमिक शिक्षा को सबके लिए अनिवार्य बनाने के फुले के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा कि कुनबी शुद्र समाज के बच्चों को इतिहास भूगोल और गणित पढ़ाने की क्या जरूरत है। उन्हें अपने परंपरागत जातीय पेशे को अपनाना चाहिए। आधुनिक शिक्षा उच्च जातियों के लिए उचित है। 

तिलक ने महार और मातंग जैसी अछूत जातियों के स्कूलों में प्रवेश का सख्त विरोध किया और कहा कि केवल उन जातियों का स्कूलों में प्रवेश होना चाहिए जिन्हें प्रकृति ने इस लायक बनाया है। यानी उच्च जातियां.

हम सभी जानते हैं कि फुले ने 1848 में अछूत बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया था और 3 जुलाई 1857 को लड़कियों के लिए अलग से स्कूल खोला। स्त्री शिक्षा का भी तिलक ने उतनी ही तत्परता से विरोध किया। पुणे में लड़कियों के लिए खोले गए रानाडे के स्कूल ने ऐसा पाठ्यक्रम लागू किया था जिससे वे आगे जाकर उच्च शिक्षा ले सके। रानाडे इस बात पर जोर देते थे कि एक राष्ट्र के समग्र विकास के लिए महिलाओं की शिक्षा बेहद जरूरी है। रानडे के इस स्कूल में मराठा कुनबी सोनार यहूदी और धर्म बदलकर ईसाई बने समुदायों की लड़कियां भी आती थीं। इनमें से कई कथित अछूत परिवारों की लड़कियां भी थीं। इस पर तिलक ने कहा अंग्रेजी शिक्षा महिलाओं को स्त्रीत्व से वंचित करती है। इसे हासिल करने के बाद वे एक सुखी सांसारिक जीवन नहीं जी सकती। उनका इस बात पर बहुत जोर था कि महिलाओं को सिर्फ देशी भाषाओं नैतिक विज्ञान और सिलाई कढ़ाई की शिक्षा देनी चाहिए। लड़कियां स्कूल में सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक पढ़े इसका भी उन्होंने विरोध किया। वे चाहते थे कि लड़कियों को सुबह या शाम सिर्फ तीन घंटे पढ़ाया जाना चाहिए ताकि उन्हें घर का काम करने और सीखने का वक्त मिले। 


1918 में जब इन जातियों ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग उठाई तो तिलक ने सोलापुर की एक सभा में कहा था कि तेली तमोली कुनबी विधानसभा में जाकर क्या करेंगे बाबा साहब के मुताबिक तिलक के हिसाब से इन जातियों के लोगों का काम कानून का पालन करना है और उन्हें कानून बनाने का अधिकार नहीं होना चाहिए।


 

इसिलिए बाबासाहेब तिलक का विरोध करते थे ओर जोतिबा फुले को अपना गुरु मानते थे.



Artical Writter by

Shital Ambedkar

The Power of Ambedkar

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