क्या आपने कभी सोचा है यह सवाल है राज् का पहली बात श्री मायावती जी रामविलास पासवान, जिग्नेश मेवानी, बालासाहेब प्रकाश आंबेडकर, रामचंद्र शेखर आजाद मान्यवर कांशीराम जी, जीतन राम मांझी एवं अन्य नेताओं को जो दलित वर्ग से आते हैं उन्हें दलित नेता ही क्यों कहा जाता है.
दूसरी बात लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, को यादवों का नेता आजम खान असदुद्दीन ओवैसी इन मुसलमानों का नेता भूपेश बघेल नीतीश कुमार एवं अनुप्रिया पटेल कुर्मी नेता उपेंद्र कुशवाहा केशव प्रसाद मौर्य को कुशवाहा नेता उदय नारायण चौधरी को पासी समाज का नेता मुकेश साहनी को मल्लाह समाज का नेता जैसे विशेषण टैग कर दिया जाता है ज्यादा से ज्यादा इन लोगों को पिछड़ों एवं दलितों के नेता के रूप में ही स्वीकार किया जाता है.
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वहीं तीसरी बात नरेंद्र मोदी सुशील मोदी मनोहर लाल खट्टर आदि नेताओं को बनियों का नेता नहीं कहा जाता है.
चौथी बात पंडित नेहरू इंदिरा गांधी राजीव गांधी नरसिम्हा राव अटल बिहारी बाजपेई ममता बनर्जी नवीन पटनायक आदि नेताओं को ब्राह्मणों का नेता कह कर संबोधित नहीं किया जाता है.
पाचवी बात योगी आदित्यनाथ पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इन्हें राजपूतों का नेता नहीं कहा जाता है मतलब साफ है कि भारत की स्वर्ण मीडिया और स्वर्ण समाज आज भी दलित एवं पिछड़े वर्ग के नेताओं को अपना नेता नहीं मानता है इनका मानना है कि वह सिर्फ अपने समाज के नेता हो सकते हैं हमारे नहीं पांव की जूती सर का टॉप कैसे दलित एवं पिछड़े वर्गों से आए हुए नेतृत्व उन्हें किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है पिछड़े एवं दलित मुख्यमंत्री बन कर भी उनका नेता नहीं बन सकते वे एक मुखिया बनकर भी पिछड़े एवं दलित के नेता बन सकते हैं यह सोच ही मनुवादी सोच है खुद को श्रेष्ठ और समाज के बड़े
आपके को निकृष्ट समझने का भाव है शिवराज सिंह चौहान जैसे लोग तो नजरों का धोखा मात्र हैं ऐसे लोग उनके ही एजेंडे पर काम करते हैं यह अनायास नहीं है यह एक गहरी साजिश और सोची समझी राजनीति का हिस्सा है मीडिया प्रदत्त इन विशेषण ओं के कारण दलित एवं पिछड़े समाज के लोग टुकड़ों में बढ़ जाते हैं और इन्हें तोड़ना ज्यादा आसान हो जाता है इसलिए पिछड़े एवं दलित वर्ग के लोगों को भी उन्हें उन्हीं की भाषा में जवाब देना चाहिए सोचेगा जरूर.....
Artical Writter by
Rohini
The GRH Groups
जय भीम जय सविधान
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