एक बार एक जवान आदमी बुद्ध के पास आया और बोला- आप मुझे ऐसी शिक्षा दें कि मैं आपके दिए हुए ज्ञान को आसान भाषा में समझ सकूं। बुद्ध ने उस आदमी से पूछा- क्या तुम्हारा कोई बेटा है ? आदमी ने कहा- हाँ, मेरा बेटा है, बुद्ध ने फिर पूछा क्या तुम्हारे भाई का कोई बेटा है ?
आदमी ने कहा- हाँ, मेरे भाई का भी बेटा है, बुद्ध ने फिर पूछा क्या तुम्हारे पड़ोसी का भी कोई बेटा है? आदमी ने कहा- हाँ, मेरे पड़ोसी का भी बेटा है, बुद्ध ने कहा क्या कोई ऐसा इंसान जिसे तुम व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते हो, क्या उसका भी कोई बेटा है. आदमी ने कहा हाँ उसका भी बेटा है। फिर बुद्धा ने उस से पूछा अच्छा बताओ अगर तुम्हारे बेटे की मृत्यु हो जाएं तो तुम्हे कितना दुख होगा?
आदमी ने कहा, बुद्धा मैं आपको नहीं बता सकता कि मैं क्या करूँगा मेरी तो दुनिया ही खत्म हो जाएगी मैं खुद मर जाऊंगा उसके बिना, मैं अपना जीवन अपने बेटे के बिना सोच ही नहीं सकता। बुद्धा ने आगे पूछा अगर तुम्हारे भाई के बेटे की मृत्यु हो जाएं तो तुम्हे कितना दुख होगा आदमी ने कहा मुझे बहुत दुख होगा लेकिन उतना नही जितना मेरे खुद के बेटे के मरने पर होगा।
बुद्धा ने आगे फिर पूछा कि अगर तुम्हारे पड़ोसी के बेटे की मृत्यु हो जाएं तब तुम्हे कितना दुख होगा। आदमी ने कहा- मुझे तब भी दुख होगा लेकिन मेरे भाई के बेटे की मृत्यु से कम होगा। भगवान बुद्ध ने फिर आगे पूछा अगर उस अनजान व्यक्ति के बेटे की मृत्यु हो जाये जिसे तुम जानते तक भी नहीं तब तुम्हे कितना दुख होगा। उस जवान आदमी ने कहा तब मुझे बिल्कुल दुख नहीं होगा
क्योकि में तो उसे जानता तक नही हूँ, फिर बुद्ध ने उस से पूछा अब ये बताओ हमारा दुख किस पर निर्भर करता है?, उस आदमी ने काफी देर सोचने के बाद कहा, कि हमारा दुख इस बात से निर्भर करता है कि हम किसी भी चीज से कितना जुड़े हुए हैं. हम उस से कितना लगाव महसूस करते हैं और किस हद तक अपना मानते हैं इस बात पर निर्भर करता है।
बुद्धा ने कहा- बहुत बढ़िया, बुद्धा ने फिर उस आदमी से पूछा- अच्छा अगर तुम अपने बेटे को समुंदर के किनारे ले जाओगे तो क्या वह उसकी रेत से नहीं खेलेगा? आदमी ने कहा- हाँ, बुद्धा बिल्कुल खेलेगा। बुद्धा ने फिर पूछा कि अगर समुंदर से आने वाली लहरे तुम्हारे बेटे के बनाये घर को तोड़ देगी तो क्या वह रोयेगा आदमी ने कहा हाँ, वह तब रोयेगा ।
बुद्धा ने पूछा क्या तुम भी उसके साथ रोओगे? आदमी ने कहा- नही में नही रोऊंगा, बुद्ध ने पूछा- क्यो? आदमी कहता है क्योकि वह बच्चा है। उसे लगता है ये रेत का घर बहुत ख़ूबसूरत हैं और हमेशा बना रहेगा, का घर सा उसका उस घर से जुड़ाव हो जाता है लगाव हो जाती है। उसकी भावनाएँ उस रेत के घर से रहती है। जबकि मैं जानता हूँ कि वह एक रेत का घर हैं और हमेशा बना हुआ नहीं रहेगा कुछ समय
कुछ समय बाद उसे लहरों से टूटना ही है जब वह लहरों से टूटेगा तो मुझे दुख नही होगा। बुद्धा मुस्कुराए और बोलें की अब तुम समझ गए अगर तुम इस ब्रहांड की सच्चाई को जानने की कोशिश नही करते तो तुम भी ऐसे ही चलते चले जाते हैं और तब तुम्हे भी इस रेत के घर के टूटने का दुख होता तुम में और इस रोने वाले बच्चे के बीच कोई फर्क नही रह जाता।इस से बुद्धा हमे बताना चाहते हैं कि दोस्तों हमें लगाव कम से कम रखना चाहिए यानी किसी को भी खुद से ज्यादा मत जोड़ो क्योंकि इस दुनिया मे कोई भी चीज हमेशा के लिए नही होती। इस दुनिया की हर एक चीज हर एक इंसान नश्वर है हम उनसे जब जुड़ जाते हैं, खुद को जोड़ लेते हैं जब वह चले जाते हैं हमें
छोड़कर , तब हमें बेहद दुख होता है। ये वो रहस्य था जो बुद्धा जान गए थे. शांति पाने का केवल एक ही रहस्य है लगाव का न होना
क्योंकि इस दुनिया में सब कुछ एक भरम है नश्वर है आप इस भ्रम से खुद के लिए क्या चुनते हैं ये आप पर निर्भर करता है जितना ज्यादा आप ज्ञान को अर्जित करेंगे उतना ज्यादा आप बुद्धि, विवेक से समझ पाएंगे और आप अपनी जिंदगी को जैसा देखेंगे वैसी वह बन जाएगी
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Rupali Taiwade
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