क्यू बाबासाहेब ने का की मुझे पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया. जानिए - The Power of Ambedkar

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Saturday, November 16, 2019

क्यू बाबासाहेब ने का की मुझे पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया. जानिए

बाबासाहब की रुला देनी वाली एक कथा


बाबा साहब अपने अन्तिम दिनों में अकेले रोते हुऐ पाये गये
बाबासाहेब अम्बेडकर को जब पिछड़ा वर्ग आरक्षण देने के लिये बना काका कालेलकर कमीशन 1953 में मिलने के लिऐ गया, तब कमीशन का सवाल था कि,
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आपने सारी जिन्दगी पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिऐ लगा दी। आपकी राय में उनके लिऐ क्या किया जाना चाहिए?


बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर पिछड़े वर्ग का उत्थान करना है तो इनके अन्दर बड़े लोग पैदा करो।

काका कालेलकर यह बात समझ नहीं पाये। उन्होंने फिर सवाल किया ” बड़े लोगों से आपका क्या तात्पर्य है?
बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर किसी समाज में 10 डॉक्टर, 20 वकील और 30 इंजीनियर पैदा हो जाऐं,
तो उस समाज की तरफ कोई आँख उठाकर भी देख नहीं सकता।

”इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 में आगरा के रामलीला मैदान में बोलते हुऐ बाबा साहेब ने कहा “मुझे पढ़े लिखे लोगों ने धोखा दिया।
मैं समझता था कि ये लोग पढ़ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेंगे, मगर मैं देख रहा हूँ कि,

मेरे आस-पास बाबुओं की भीड़ खड़ी हो रही है, जो अपना ही पेट पालने में लगी है।”यही नहीं, बाबासाहब अपने अन्तिम दिनों में अकेले रोते हुऐ पाये गये
बाबा साहब
जब वे सोने की कोशिश करते थे, तो उन्हें नीँद नहीं आती थी।अत्यधिक परेशान रहते थे।
परेशान होकर उनके स्टेनो एवं सचिव नानकचंद रत्तु ने बाबासाहब से सवाल पूँछा कि, आप इतना परेशान क्यों रहते हैं?*

*उनका जवाब था, “नानकचंद, ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो, इस अकेली दिल्ली मेँ 10,000 कर्मचारी, अधिकारी यह केवल पिछड़ी एवं अनुसूचित जाति के हैं, जो कुछ साल पहले शून्य थे।

संविधान में मिले अधिकारों के कारण ही यह सब सरकारी नौकरी में है इसके लिये मैंने कितना संघर्ष किया है शब्दों में बयान करना मेरे लिए संभव नहीं है।*

*मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया, अपने लोगों में पढ़े लिखे लोग पैदा करने के लिए।

क्योँकि, मैं समझता था कि, मैं अकेल पढ़कर इतना काम कर सकता हूँ,तो अगर हमारे हजारों लोग पढ़ लिख जायेंगे, तो इस समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा।

मगर नानकचंद, मैं जब पूरे देश की तरफ एवं अपने समाज की तरफ निगाह डालता हूँ, तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीं आता है,

जो मेरे कारवाँ (संघर्ष के मार्ग)को आगे ले जा सके। नानकचंद, मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा हैं।

जब मैं मेरे मिशन के बारे में सोचता हूँ, तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है।

“जिस महापुरूष ने अपनी पूरी जिन्दगी, अपना परिवार,चार बच्चे आन्दोलन की भेँट चढ़ा दिये,जिसने पूरी जिन्दगी यह विश्वास किया कि,
पढ़ा लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाईयों को आजाद करवा सकता हैँ,

उनको बराबरी का हक व अधिकार दिलवा सकता है लेकिन आज नौकरी करने वालों में ज्यादातर लोगों का ध्यान समाज के शोषित,वंचित लोगों से हट गया है
साहब अपने अन्तिम दिनों में अकेले रोते हुऐ पाये गये

जिनको अपने लोगों को आजाद करवाने का मकसद अपना मकसद बनाना चाहिए था।
मेरे भाइयों अब तो जागो
मिशन से दूर मत भागो
🙏अपनी जिम्मेदारी निभाओ🙏
मैसेज को आगे बढ़ाबढ़ाओ
जय भिम नमो बुद्धा

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